जे.एन.यू. में एक छात्र पर बर्बर हमले ने फिर सनसनी फैला दी है । इससे पहले इतनी वीभत्स घटना शायद ही किसी विश्वविद्यालय की क्लास में घटी हो । देश के बाकी हिस्सों विशेषकर हिन्दी प्रांतों में ऐसी घटनाएं हर शहर में रोज हो रही हैं लेकिन देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जे.एन.यू. में ऐसा होना एक भयानक संकट का संकेत दे रहा है । इतनी वीभत्स क्रूरता की उम्मीद जे.एन.यू. परिसर में किसी ने नहीं की होगी । कितनी नृशंस मानसिक तैयारी के साथ छात्र आकाश आया था । चाकू, हथौड़ा, कट्टा, सल्फास । रोशनी को मारने के लिए भी और खुद को भी । रोशनी अभी भी जीवन मृत्यु के बीच झूल रही है । पूरा देश या दुनिया जे.एन.यू. को इस रूप में जानती है कि वहां विश्व मामलों की राजनीति से लेकर इतिहास, समाजशास्त्र, भाषा, अध्ययन और शोध के सर्वश्रेष्ठ विभाग और प्रोफेसर हैं । माहोल भी यूरोप, अमेरिका के किसी भी विश्वविद्यालय जैसा आधुनिक और वैसा ही पूरा परिसर, होस्टल, पुस्तकालय । यहां की छात्राएं भी उतनी उदार, प्रगतिशील सोच की रही हैं जिसके चलते सभी राजनीतिक दलों में यहां से निकले छात्राओं की चमक अलग पहचान में आ जाती हैं ।
फिर ऐसी घटनाएं वहां क्यों बढ़ रही हैं ? यह भविष्य में पूरे विश्वविद्यालय की गिरावट का संकेत तो नहीं ? कई प्रश्न पूरे समाज, देश के सामने छोड़े हैं । इस घटना में जिस छात्र और छात्रा का नाम सामने आए हैं वे दोनों ही बिहार राज्य के हैं और दोनों ही छोटे कस्बे से संबंध रखते हैं । आकाश नाम के छात्र ने पहले बनारस विश्वविद्यालय में पढ़ाई की और फिर सपनों की उड़ान उसे जे.एन.यू. के कोरियाई भाषा संस्थान में ले आई । वैसी ही यात्रा रोशनी नाम की छात्रा की है । आकाश की क्रूरता उस मनस्थिति का बयान है जहां बचपन में पले संस्कार कभी पीछा नहीं छोड़ते । बचपन के संस्कार यानि सामंती, सोच, जातिवादी और सबसे आगे स्त्री वह चाहे सहपाठी हो, प्रेमिका या पत्नी उसे कभी बराबर नहीं समझना बल्कि उससे भी एक कदम जाकर उस पर मनमर्जी अधिकार जमाने की चेष्टा । थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि लड़की उसकी दोस्त थी तो क्या साथ पढ़ने वालों में दोस्ती कोई गुनाह है ? क्या दोस्ती का अर्थ दुतरफा मिजाज नहीं है जिसमें दोनों पक्षों का पूरा हक है कि वह कब और कैसे साथ रहे अथवा उसे छोड़ दे । यदि लड़की संबंध नहीं रखना चाहती तो इतनी बड़ी हिंसा की बात भी क्यों आई ? हमें उन जड़वादी संस्कारों को पूरी तरह से नष्ट करने की जरूरत है जो आज देश के हर हिस्से में आधुनिकता की तरफ बढ़ते बीसवीं सदी के भारत के चेहरे पर कालिख पोत रहे हैं । विशेषकर प्यार, मोहब्बत के शब्दों के आसपास जितनी हिंसा बिखरी हुई है उतनी अन्यत्र नहीं । भूमंडीकरण के दौर में एकतरफ आधुनिकता और बराबरी के अहसास की ब्यार और दूसरी तरफ पुरुष वर्चस्व वादी सोच का शिकंजा । इन दोनों के बीच हमारे समाज की बखिया उघड़ रही है और उसमें जे.एन.यू., दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी संतुलन नहीं बना पा रहे । स्त्री अध्ययन, बराबरी का प्रश्न या आधुनिकता के नए विमर्शों को जे.एन.यू. के पाठ्यक्रम में तो पिछले दिनों शामिल कर लिया गया है लेकिन देश के ज्यादातर विश्वविद्यालय और स्कूलों तक यह बातें अभी तक नहीं पहुचीं । इसी का नतीजा है कि शहरों में पहुंचने के बावजूद भी वे कागजों पर तो आधुनिक हो गए हैं संस्कारों में अभी भी बनेले और खुंखार हैं । पिछले दिनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने लड़कियों के मोबाईल पर रोक लगाई थी तो पिछले वर्ष कर्नाटक और कानपुर जैसे शहरों में छात्राओं के परिधानों पर । हमारे समाज और विश्वविद्यालय को समझने की जरूरत है कि मोबाईल और परिधान आधुनिकता के विरोधी नहीं हैं । विरोधी हैं तो आपके समाज और धर्म की गैर बराबरी पर आधारित संरचनाएं ।
कुछ जिम्मेदारी इन संस्थानों की भी है । दिल्ली विश्वविद्यालय, वर्धा, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे शीर्ष संस्थानों से भी पिछले दिनों स्त्री उत्पीड़न या महिलाओं के शोषण की खबरें आ रही हैं । कम-से-कम- हिन्दी प्रदेशों में तो इसका एक स्पष्ट कारण यह भी है कि इन विश्वविद्यालय के शीर्ष पर बैठे प्रोफेसर प्रोफेसर या वाईस चांसलर भी ऐसी अनैतिकताओं में डूबे हैं । कई बार तो सब लोगों को पता होते हुए भी सत्ता की राजनीति उन्हीं विश्वविद्यालयों के इन शीर्ष पदों पर पहुंचने में और मदद करती है । हाल ही में आए हुए एक सर्वे को याद करना यहां जरूरी लगता है । भारतीय राजनीति के संदर्भ में इस सर्वे ने खुलासा किया है कि जो बहुत ज्यादा बेईमान और अनैतिक हैं भारतीय लोकतंत्र में उनके जीतने की संभावना उतनी ही ज्यादा हैं । यहां तक कि उनके जीतने का अंतर भी । पिछले दिनों से उत्तर भारत के अकादमिक जगत में भी यह बात उतनी ही सही मालूम पड़ती है । जो जितना व्याभिचारी, बेईमान, जातिवादी उतनी ही तेज उसकी रफ्तार, प्रतिष्ठा पुरस्कार और और पदों की दौड़ में ।
पिछले वर्ष दिसंबर में ऐसी ही एक छात्रा निर्भय की घटना ने भारतीय समाज को झकझोरा था । उसमें लिप्त अपराधी समाज के लगभग बिना पढ़े-लिखे वर्ग से आते थे । लेकिन जे.एन.यू. की घटना तो उससे भी बड़े अपराध की आहट है । इसमें एक तथाकथित सीधा, मेधावी छात्र कुल्हाड़ी, सल्फास, तमंचा, चाकू के साथ कक्षा में आता है और सरेआम वह कांड कर बैठता है जिससे पूरे देश का सिर शर्म से झुक जाए । और मस्तिष्क में फैल रही इस हिंसा को स्कूल और विश्वविद्यालय ही रोक सकते हैं क्योंकि किसी भी देश को अच्छा नागरिक पैदा करना इन्हीं संस्थानों की जिम्मेदारी है । क्या जे.एन.यू. की घटना से देश के बाकी विश्वविद्यालय कोई सबक सीखेंगे ?