बड़ा रोचक खेल है राजनीति । कभी सॉंसों को तेज-तेज चलाने वाला तो अगले ही पल कभी गला भींचता । इधर फूंक-फूंककर कदम रखते हुए कुछ नवीनता के मोह या स्वाद बदलने की खातिर में उस गली में टहल रहा हूं जिसे लोकतंत्र का जश्न कहते हैं । ‘अजी क्यों दे इनको वोट ! इनसे पूछो कि तुम हमारे लिए क्या करोगे ? क्या दोगे ? हम इनकी बातों में नहीं आने वाले ।’ ये सज्जन भारत सरकार से रिटायर हुए हैं । मोटी पेंशन लेते हैं । कथाकार चन्द्रकिरन सोनरिक्सा के शब्दों मे उस सरकारी जाति के हैं जिसे नौकरी यानि रिटायरमेंट तक मुफ्तखोरी और फिर पेंशन की सुविधा मिली हुई है । दिल्ली में अच्छे बंगले में रहते हैं । बगल में सुन्दर पार्क । इन्हें फिर भी कुछ चाहिए । मतलब इनसे बचकर चंपारण के गांव या छत्तीसगढ़ के आदिवासियों तक कुछ नहीं पहुंचना चाहिए ।
उम्मीदवार के आने में अभी देर है । लोग मगर बर्छी भाले पैनाये जा रहे हैं । तलवारें चमक रही हैं । एक-एक कर लोग कुछ ऐठते हुए से जुट रहे हैं । ‘वोट मांगते वक्त कैसे हाथ जोड़े आते हैं फिर पता नहीं चलेगा ।’ बीच-बीच में यह वाक्य उछलता रहता है ।
उम्मीदवार आया । चेहरा उड़ा हुआ । गला बैठा हुआ फिर भी बोला, मनुहार की । राजनीति में पहली बार कूदने की थकान साफ थी । देखते-देखते लहूलुहान कर दिया बेचारे को वोटरों ने । कश्मीर पर क्या करोगे ? औरतों की सुरक्षा कैसे होगी ? और कैसे होंगे बिजली के दाम कम ? बाप रे बाप । निहत्थे उम्मीदवार पर इतने वल्लम, भाले । ऐसी जवाबदेही तो किसी काम में नहीं देखी । इतना हिसाब-किताब ? दिल टूटने लगा ।
नवंबर की किसी तारीख को गेट पर भंडारा चल रहा था । फिर भंडारा ? कुछ दिन पहले साईं बाबा के ऐसे ही कीर्तन के खिलाफ मैंने शिकायत की थी । लेकिन आज गुस्सा पी गया और आगे बढ़कर प्रसाद खाया । क्योंकि आज मौका था वहां जमा भीड़ के बीच जाकर पार्टी के प्रचार करने का । जनता के बीच राजनीति करनी है तो उनके हर ड्रामे में हां में हां मिलानी होगी । वह वैज्ञानिक है या अवैज्ञानिक । मन में द्वंद्व उभरता है क्या समझौता वाद की तरफ बढ़ रहे हो ? वाकई । याद आया पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की दौड़ में ओबामा के गले में हनुमान का ताबीज लटका हुआ था ।
सूरज की अगली किरणों के साथ फिर हिम्मत जुटाई । वोटर के दरवाजे पर खड़े हैं ‘इस बार वोट उसको देना । हम मकान नंबर छियानवे में रहते हैं ।’ आपके कहने की जरूरत ही नहीं । सबको देख लिया । हम भी देंगे और इनसे भी दिलवायेंगे । हम तो चाहते हैं पढ़े-लिखे डॉक्टर, इंजीनियर राजनीति में आएं । फिर क्यों नहीं आते ?
सिंगापुर के सुपरमैन प्रधानमंत्री लीकुआन अपनी ग्रंथाकार बायोग्राफी ‘थर्ड वर्ड टू फर्स्ट वर्ड’ में लिखते हैं कि सिंगापुर को करिश्माई मुल्क बनाने में मैंने अपने देश के पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी, इंजीनियर, डॉक्टरों को राजनीति में आने के लिए फुसलाया । प्रेरित किया । सबसे अच्छे दिमाग आखिर राजनीति से दूर क्यों रहें ? शुरू में इन्हें लाने में मेहनत करनी पड़ी क्योंकि इनके मिजाज में लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनने, समझने का धैर्य नहीं था । लेकिन धीरे-धीरे देश-विदेश में पढ़ी इन प्रतिभाओं के जुड़ने से सिंगापुर की राजनीति भी बदल गई और शासन भी । आज हम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों में शामिल हैं । एअरलाइन्स से लेकर शिक्षा, प्रशासन, अर्थव्यवस्था सभी ओर ।
लेकिन हमारे देश के लोकतंत्र में इनकी भागीदारी न नेता चाहते, न दल । तथाकथित बुद्धिजीवी लेखक भी नहीं । नेता क्यों अपने वंश की जड़ों पर मट्ठा डालें और बुद्धिजीवियों चालाक लोमड़ी की तरह हैं । आजादी तो भी रहती है । मनमर्जी सत्ता की तरफ जुड़ने, छोड़ने की । मालपुए पूरे, मेहनत थोड़ी-बहुत । वह भी वातानुकूलित ड्राइंगरूम या सेमीनारों में । जब जिसको चाहें कटघरे में खड़ा कर दें कागजों में । शायद इसीलिए बुद्धिजीवियों, लेखकों को कागजी शेर भी कहा जाता है । हिन्दी पट्टी पर तो यह पूरी तरह लागू होती है । इसीलिए राजनेताओं ने इन्हें गिनना ही बंद कर दिया है । खैर ! हर समाज में सबकी तरह इन्हें भी रहने का हक है ।
मेरे सबसे नजदीक पड़ौसी का बेटा हमारी पार्टी के साथ था । उसे बूथ एजेन्ट बनना था । पता नहीं क्या हुआ उसके बाद न उसके पापा दिखाई दिए न बेटा । आंख-मिचौली का अद्भुत खेल । नये लोगों के नाम पते से मेरी डायरी भरती जा रही है । इतने लोगों से मिलना कि दिमाग का आयतन छोटा पड़ जाए या फूट जाए । अपने आसपास के पड़ोसियों को पहली बार जान रहा हूं । जिस दो कुत्ते वाले पड़ोसी से मैं आज तक नहीं बोला मैंने उसके कुत्ते को पुचकारा और रोककर उसका हाल-चाल पूछा । जिस सज्जन के दिल का इलाज हुए तीन महीने हो चुके हैं उनका दर्द जानने की फुरसत मुझे आज मिली है । वाकई राजनीति सिर्फ तोड़ती ही नहीं जोड़ती भी है । भले ही मतलब की खातिर ।
दिनांक : 25/11/13
Very good thought. ye bhi rajneetiko ke sath hota ya karna padata hai jiska badala jeetane ke bad lete hai.