बहुत जरूरी मुद्दा है विशेषकर परम्परा की कुंडली और आधुनिक के ‘प्रेम’ के बीच झूलती पीढ़ी के लिए । मानवीय रिश्तों, संवेदनाओं के पवित्र शब्द विवाह, प्रेम, के बीच कुंडली, गोत्र ज्योतिष को सिरे से खारिज करने की जरूरत है वरना दुनिया भर के लिए 21वीं सदी में भारत मध्यकाल में ही खड़ा नजर आएगा । कई चेहरे उभर रहे हैं दिल्ली में आसपास के मित्रों, रिश्तेदारों के । दसियों साल से वे बेटा-बेटी की शादी के लिए कुंडली, गुण, ग्रह मिला रहे हैं । ज्योतिष और जन्मपत्री तो हैं ही कंप्यूटर पर भी मिलान करते हैं और घंटों फरेबी पंडितों से भी सलाह लेते हैं । लेकिन सब व्यर्थ । शादी होने तक की नौबत नहीं आ रही । कभी लड़की-लड़के देखने से पहले ही कुंडली आगे बढ़ने से मना कर देती है तो कभी सब कुछ ठीक-ठाक होने के बाद भी ये कुंडलियां मानवीय संबंधों, पहचान, अस्मिता का गला घोंट डालती हैं । एक सुंदर, पढ़ी-लिखी लड़की से लेकर गॉंव की भोली-भाली लड़की पर क्या बीतती होगी ? वह समझ नहीं पाती कि ये कुंडली, मंगली कहां हैं और क्यों दखल दे रहे हैं और कैसे इसका सर्वनाश किया जाए ?
जाने-माने वैज्ञानिक जयंत नर्लीकर बड़े दु:ख के साथ कहते हैं कि आज से तीस-चालीस पहले की पीढ़ी भी ज्योतिष, कुंडली में इतना यकीन नहीं करती थी जितनी कि शहरों में रहने वाली यह नौजवान पीढ़ी । और भी बड़े अफसोस की बात है कि इनमें से ज्यादातर के पास तथाकथित एम.बी.ए., इंजीनियर, डॉक्टर जैसी डिग्रियां हैं । पुरानी पीढ़ी के पास तो अपने बच्चों के जन्मदिन की तिथियां तक ठीक-ठाक नहीं थीं । इसके बावजूद भी भारतीय समाज की एक विशिष्ट पहचान विवाह या दांपत्य जीवन ठीक-ठाक चलते रहे । इतने तालाक भी नहीं हुए और न इतने तनाव । नयी पीढ़ी के पास बच्चों के जन्म के दिन ही नहीं घंटे, सैकिंड और माइक्रो सैकिंड तक हैं । लेकिन फिर भी जीवन की अनिश्चितता, डर, अंधविश्वास उनके पूरे जीवन पर कुंडली मारकर बैठा है ।
पिछले हफ्ते दिल्ली के एक प्रसिद्ध स्कूल की प्रिंसिपल की बेटी की आत्महत्या के पीछे एक कारण यह भी बताया गया कि उसकी शादी में दिक्कत हो रही थी और हर बार ‘कुंडली’ नहीं मिलती थी । धिक्कार है उन मॉं-बापों पर जिन्होंने अपने बच्चों को कुंडली, ग्रह और ज्योतिष पर ऐसा आश्रित बनाया और शर्म उस पीढ़ी को भी आनी चाहिए जो विज्ञान की ईजाद की हुई हर चीज का उपयोग करती है कार, मैट्रो, मोबाईल, टेलीविजन, आईपैड, डॉक्टरी, दवाएं, फैशनेबल क्रीम । लेकिन उनका दिमाग वैज्ञानिक चेतना से शून्य है । पता नहीं कौन सी शिक्षा है जो उन्हें एक तर्कशील नागरिक नहीं बनने दे रही । सामान्य तर्क या समझ से सभी भारतीय चलने लगे और आपसी प्रेम मोहब्बत, ईश्क, रोमांस पर यकीन करने लगे तो न जाने कितने चेहरों को जलने, आत्महत्या या हत्या से बचाया जा सकता है ।
एक सामान्य वैज्ञानिक चेतना और समझ को फैलाने में अमिताभ बच्चन या दूसरे जाने-माने चेहरों का भी कम योगदान नहीं रहा । जनता इन्हें देखती है और वैसा ही करती है आखिर क्यों मीडिया इन तथाकथित बड़े लोगों की मूर्खताओं, अंधविश्वासों को इतना दिखाता है और क्यों इनके खिलाफ जिहाद में शामिल नहीं होता ? यहां पूर्व राष्ट्रपति कलाम याद आ रहे हैं । उनसे राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के लिये एक राजनेता ने शुभ महूर्त सुझाया । उनहोंने साफ मना कर दिया कि ईश्वर का बनाया हर दिन शुभ होता है ।
क्या दुनिया का कोई और देश भी आधुनिकता और मूर्खताओं की परम्पराओं की इतनी भयानक कशमकश से गुजर रहा है ? शायद नहीं । अखबार, पत्रिकाएं बेचने वाले बताते हैं कि आजकल उनके अखबारों की बिक्री कम हो गई है लेकिन ज्योतिष, कुंडली की किताबें और ज्यादा बिक रही हैं । क्या इन सब बातों से लगता है कि भारत 21वीं सदी में पहुंच गया है ? क्या यह सब अंधविश्वास, पोंगापंथी ही पूरे मुल्क के विकास, बराबरी में बाधक नहीं है ? वक्त आ गया है कि हम पूरे देश को कुंडली, ज्योतिष या अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाएं और वैज्ञानिक चेतना को आगे बढ़ाएं ।