भूमिका
देश के लिये इससे शर्मनाक बात क्या होगी जब उसके नौजवान अंग्रेजी के आतंक में आत्महत्या करने के लिए मजबूर हों । वर्ष 2012 में एम्स में चिकित्सा के छात्र अनिल मीणा की आत्महत्या अभी तक जेहन में फड़फड़ा रही है । आत्महत्या से पहले इस नौजवान ने नोट छोड़ा था कि ‘अंग्रेजी में पढ़ाया मेरी समझ में कुछ नहीं आता । पूरे अंग्रेजी माहौल में मैं अकेला पड़ गया हूं ।’ सैंकड़ों किस्से है आत्महत्या से लेकर बच्चों के अवसाद में जाने तक के । बस्ते के बोझ की समीक्षा किसी तो कई बार हुई है; अध्यापकों की क्रूरता, पिटाई, जातिगत भेदभाव की बातें भी सरकार बढ़-चढ़कर बताती हैं लेकिन अंग्रेजी का बोझ और भूमिका उस तनाव और स्कूल छोड़ने के पीछे कितनी भयानक है, हर संभव इससे बचकर निकलने की कोशिश रहती है ।
क्या आप इन प्रश्नों से मुंह मोड़ सकते हैं ? पिछले दस-पन्द्रह बरसों में इसीलिये मुझे जितना बैचेन भाषा के मसले ने किया है उतना किसी और ने नहीं । हिन्दी पट्टी के पतन के पीछे भी मुझे शिक्षा, और भाषा में आई विकृतियां ज्यादा लगती हैं । थोड़ा ठहर कर सोचें तो देश की जिस समस्या की तरफ ध्यान गया उसके पीछे कारण ऐसी सामान्य समझ का न होना है जो सीधे-सीधे अपनी भाषा से ही आती है । उदारीकरण के नाम पर अंग्रेजी इतनी आक्रामकता के साथ लादी जा रही है कि बच्चों की रचनात्मकता ही गायब हो गयी । उदारीकरण अंग्रेजी का पर्याय बना दिया गया है और दुगर्ति सामने है । आई-आई-टी-, आई-आई-एम- हैं लेकिन उनकी चमक लगातार कम हो रही है । 2012 में दुनिया के दो सौ शीर्ष शिक्षा संस्थानों में भारत का एक भी नहीं । जबकि वहां चीन, सिंगापुर, कोरिया समेत एशिया के कई देश हैं । इंजीनियरिंग, मेडिकल और दूसरे व्यावसायिक कॉलिज पर्याप्त मात्रा में खुले हैं लेकिन उनसे निकले छात्रों को न अपने उद्योग लेने को तैयार हैं न वे अपने बूते स्वयं कुछ कर पाने में समर्थ । सरकार प्रतिदिन सिकुड़ रही है और उसकी बची हुई नौकरी में अंग्रेजी और हावी । कोठारी समिति की सिफारिशों को उलटते हुए 2011 से सिविल सेवा परीक्षा के पहले चरण में ही अंग्रेजी आ गयी है तो कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में पूरी अंग्रेजी हावी । परिणाम- इस देश के गॉंव देहात के करोड़ों बच्चों का भविष्य अंधकार की तरफ बढ़ता । हताशा में ये जहां से भी हो, जैसे भी हो, रेपिडेक्स से, कोचिंग से या रातों-रात उभरे अधकचरे नुक्कड़ निजी अंग्रेजी स्कूलों से अंग्रेजी सीखने की कोशिश में जुटे हैं । अंग्रेजी का धंधा पूरे सबाब पर । मानो शिक्षा का पर्याय ही कुछ अंग्रेजी शब्द बोलना है । न उन्हें इंजीनियरिंग की समझ है, न सामाजिक विषयों की । राष्ट्र की बुनियादी समस्याओं से रूबरू होने की तो मोहलत ही नहीं दे रहा अंग्रेजी-रटंत का यह माहौल ।
यह सब तब है जब नब्बे के दशक में रेपिडेक्स का विज्ञापन कर चुके कपिल देव 2012 में यह कहते हैं कि अंग्रेजी जरूरी नहीं, हुनर जरूरी है । अमिताभ बच्चन का ‘कौन बनेगा करोड़पति’ इस देश की धरती पर इतना सफल कोई अंग्रेजी में करके तो दिखाये ? हिन्दी फिल्में, संगीत भी इस बात पर मुहर लगाती हैं कि बृहत्तर भारतीय जन मानस पर जो असर हिन्दी फिल्मों से पैदा होता है वह किसी और भाषा में संभव नहीं ।
इस संकलन में भाषा और शिक्षा के इन मुद्दों पर पिछले पन्द्रह वर्षों में लिखे लेख शामिल हैं । नीति-नियंता, राजनेता, बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, साहित्यकार ! कृपया विचार करें कि यदि अपनी भाषाओं को अंग्रेजी ऐसे ही दुतकारती हुई कौने में धकेलती रही तो भाषा, शिक्षा, संस्कृति का भविष्य क्या होगा ? मेरा ज्योतिषियों के भविष्य फल पर कभी कोई यकीन नहीं रहा, लेकिन दीवारों पर लिखी इबारतें जो बयान कर रही हैं उसे बांचकर समाज, सत्ता कोई रास्ता चुनती है तो मुझे भी कागज कारे करने का कुछ संतोष मिलेगा ।
अनुक्रम
- भाषा का भविष्य
- हिन्दी : दिल्ली की खिड़की से
- भाषा का कहर
- अंग्रेजी में क्रिकेट
- हिन्दी लेखक की ग्रंथियां
- आई.आई.सी. में हिन्दी
- अंग्रेजी बोलते भांड
- मियामी गोल्ड
- हिन्दी में कुछ-कुछ
- हिन्दी का हंस
- आओ पत्रिका निकालें
- गुलामी की भाषा
- स्कूल में हिन्दी
- अंग्रेजी का बोझ
- पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम
- शोध और शिक्षा
- मंटो, प्रेमचंद, रवीन्द्र
- पाठ्यक्रम में कवि
- पुस्तकालय और सामाजिक क्रांति
- वाचनालय में क्या बांचे
- पुस्तक की मार्किटिंग
- केकड़ा संस्कृति
- राजभाषा : कुछ नोट्स
- हिन्दी पुस्तक खरीद: ब्लैक होल की दास्तान
- हिन्दी लेखक और प्रकाशक
- शिक्षा मनीषी : डॉ. कोठारी
- लोहिया और भाषा समस्या
- मेरे आदर्श : प्रेमचंद
- हिन्दी का कुंऑं
- हिन्दी के पुरस्कार
- नाम के लेखक
- स्वदेशी और साहित्य
- हिन्दी की फिक्र
- भाषा और अकादमियां
- ज्ञान आयोग और अंग्रेजी
- भूली बिसरी ग्रंथावलियां
- के.बी.सी. हिन्दी का करिश्मा
- लोहे के पेड़
- जन्मशती : पाठक कैसे बढ़ें
- पत्रिका, प्रजातंत्र और पाठक
- हिन्दी के नाम पर
- हिन्दी की किताब : हक से मांगो मुफ्त
- न्याय की भाषा
- शिक्षा, प्रशासन और भाषा
- सिविल सेवा परीक्षा (आई.ए.एस. आदि)- (1)
- सिविल सेवा परीक्षा : कुछ और सुझाव – (2)