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एक टाट एक पाठ

May 28, 2013 ~ 1 Comment ~ Written by Prempal Sharma

‘एक टाट; एक पाठ’ यानि समान शिक्षा और समान पाठ्यक्रम हो पूरे देश को ।  केंद्रीय माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई.) ने हाल ही में (14 मई 2013) एक महत्‍वपूर्ण कदम उठाया है । आदेश जारी किया है कि केंद्रीय माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड से जुड़े सभी चौदह हजार स्‍कूलों में एन.सी.ई.आर.टी. और सी.बी.एस.ई. बोर्ड की किताबें अनिवार्य रूप से लगानी होंगी और उन्‍हें अपनी वैबसाइट पर यह घोषणा भी करनी होगी । ऐसा न करने पर उनकी मान्‍यता रद्द की जा सकती है ।

निजीकरण की तरफ बढ़ती शिक्षा के मौजूदा परिदृश्‍य में इस आदेश की खास अहमियत है । मनमर्जी खोले स्‍कूलों, कॉलिजों में मनमर्जी ढंग से किताबें लगाई जा रही थीं । दुर्भाग्‍य से इस देश का हर अमीर आजकल शिक्षा के धंधे में उतर रहा है । बड़ी कम्‍पनियां हों या धर्म के ठेकेदार या बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियां या दूसरे देश उनकी निगाहें इस धंधे के मुनाफे और मिलने वाली इज्‍जत दोनों पर है । यदि किसी धर्म सम्‍प्रदाय के मालिक ने स्‍कूल खोला है तो आप पाएंगे कि वहां सारा जोर धर्म की ऐसी शिक्षाओं पर है जो भारतीय संविधान के खिलाफ तो हैं ही कभी-कभी समाज के विभाजन का भी कारण बनेंगी । आपको याद होगा कुछ दिन पहले तमिलनाडु की मुख्‍य मंत्री जय ललिता ने 11वीं की एक किताब पाठ्यक्रम से हटाई थी । कारण था उसमें नाडार समुदाय/जाति के खिलाफ गलत बयानी । एक ऐसी किताब जो स्‍वास्‍थ्‍य, स्‍वच्‍छता, व्‍यायाम आदि के लिए पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही थी उसमें लिखा था कि मांसाहारी लोग धोखेबाज, झूठे और बेईमान होते हैं । ये चंद उदाहरण हैं । यदि देश भर में फैले हजारों स्‍कूलों की किताबों का मुआयना करें या उस पर शोध किया जाए तो बहुत भयानक तस्‍वीर सामने आएगी । इन किताबों में  उल जलूल बातें लिखना एक धर्म तक सीमित नहीं है । जहां जिसके विद्यालय, मदरसे हैं वहीं उन्‍होंने अपनी विचारधारा बिना तथ्‍यों की जांच किए ढूंस दिया । अच्‍छी बात यह है कि नए आदेशों के तहत यदि कोई ऐसा मामला प्रकरण, गलत तथ्‍य, मिथ्‍या प्रचार किसी पुस्‍तक में शामिल पाया गया तो उस स्‍कूल की मान्‍यता रद्द कर दी जाएगी । अगस्‍त 2014 तक सभी स्‍कूलों को अपनी वैबसाइट पर घोषणा करनी होगी ।

प्रोफेसर यशपाल और कृष्‍ण कुमार की अगुआई में बना एन.सी.ई.आर.टी. का नया पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत एक संतुलित पाठ्यक्रम कहा जा सकता है । इसमें पहली बार कई अच्‍छी बातें हुईं । पाठ्यक्रम बनाने से पहले 18 समूहों में पाठ्यक्रम की सोच या दशा-दिशा पर अलग-अलग समितियों में विचार हुआ । एक रूप रेखा तैयार हुई जिसे ‘राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या रूप रेखा 2005’ के रूप में जाना जाता है । देश भर में उस पर व्‍यापक प्रक्रिया हुई और फिर उसके आलोक में पाठ्यक्रम बना । पहली से लेकर 12वीं कक्षा तक । ऐसा नहीं कि पाठ्यक्रम विवादों के घेरे में नहीं आया हो । संसद में भी कई बार उस पर विवाद हुआ । 2006 में प्रेमचंद की कहानी ‘दूध के दाम’ और ‘कवि धूमिल’ और दूसरे प्रसंगों पर आपत्ति उठाई गई और उन्‍हें बदला भी गया । 2012 का विवाद तो सभी को याद होगा जो नेहरू और अम्‍बेडकर को लेकर एक कार्टून पर था । एन.सी.ईआर.टी. की किताबों में पहली बार ऐसे प्रयोग किये गये जैसे उसमें कार्टून शामिल करना, राजनीति शास्‍त्र की किताबों में उन्‍नी और मुन्‍नी के माध्‍यम से गंभीर-से-गंभीर समस्‍याओं पर खेल-खेल या कहें कि चुहुलबाजी में बड़े-बड़े प्रसंगों को उठाना आदि । कहने का पर्याय है कि शिक्षा एक स्‍थूल निर्जीव चीज नहीं है । विमर्श, बहस, आपसी संवाद से उसका रंग और निखरता है, खिलता है । लोकतंत्र की यह बुनियादी शर्त है । इस मायने में एन.सी.ईआर.टी. की नयी किताबें एक बड़ी उम्‍मीद जगाती हैं ।

लेकिन ठीक इसी वक्‍त सरकारी स्‍कूलों को बदनाम करके निजी स्‍कूलों की तरफ ऐसी बयार चली कि इतनी सूझ-बूझ और मेहनत से बनाया एन.सी.ईआर.टी. का पाठ्यक्रम एक तरफ धरा रह गया । शासन और एन.सी.ईआर.टी. प्रशासन भी शक के घेरे में आता है । जिस भी शहर जाओ शिकायतें सुनने को मिलती हैं कि

 

एन.सी.ईआर.टी. की किताबें उपलब्‍ध नहीं हैं या देर से मिलेंगी । क्‍या हम अपनी भावी पीढि़यों के लिए किताबों की भी व्‍यवस्‍था नहीं कर सकते ? इसमें कहीं-न-कहीं तंत्र के बेईमानों की भी मिली भगत रही होगी । जब किताबें नहीं मिलेंगी तो अभिभावक और बच्‍चे परेशान होंगे । इसी का फायदा उठाकर निजी प्रकाशक स्‍कूल प्रबंधन से संपर्क करते हैं और रातों-रात अधकचरी किताबें उपलब्‍ध करा दी जाती हैं । और वह भी एन.सी.ई.आर.टी. की किताबों से कई गुना मंहगी कीमत पर । कई बार तो भरमाने के लिए उनके ऊपर यह भी लिखा होता है कि एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यक्रम पर आधारित । मैंने दर्जनों निजी स्‍कूलों के बच्‍चों की किताबें देखीं हैं । स्‍कूल शुरू होने के पहले ही दिन दस-बीस किलो का बंडल थमा दिया जाता है । नकद हजारों लेकर । हर क्षेत्र में सुस्‍त विद्यालय की चुस्‍ती यहां देखने लायक होती है । इतना बड़ा बंडल देखकर बच्‍चा डर ही जाये और अभिभावक रकम देखकर । लेकिन एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्य पुस्‍तक उसमें शायद ही शामिल हो । अफसोस कि‍ जहां एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें दशकों तक वही रहती हैं इन स्‍कूलों के प्रबंधक या मालिक इन्‍हें हर एक दो साल में मुनाफे की दौड़ में बदलते भी रहते हैं । उनके लिए शिक्षा एक खेल है, एक फैशन है नित्‍य बदलने वाला । एक चमकीले कागजों का बंडल है जिसे एक चमकीले स्‍कूल के नाम और प्रपंचों द्वारा जनता को ठगने के लिए बनाया गया है । ऐसा नहीं कि सत्‍ता की नजर में यह खेल न हो लेकिन जब सत्‍ता के खिलाड़ी ही उन स्‍कूलों के मालिक हों तो आप क्‍या कर सकते हैं ?

एन.सी.ई.आर.टी. की किताबों के लगाने से जो फायदे होंगे वे हैं :- पहला लिंग, समाज, जाति, बराबरी जैसे जिन प्रश्‍नों से देश जूझ रहा है यदि बचपन में बच्‍चे एक सही शिक्षा से गुजरेंगे तो शायद एक ऐसे नागरिक बनेंगे जिसकी कल्‍पना भारतीय संविधान में की गई है । परीक्षा की प्रचलित रटंत से बचने की कोशिश की गई है और ज्यादा जोर गतिविधियों पर है । उदाहरणार्थ साहित्‍य में व्‍याकरण को रटाना लगभग हटा दिया है और विज्ञान में प्रयोगधर्मिता पर जोर है । वैसे ही इतिहास, भूगोल पहले अपने आसपास की दुनिया से जोड़ता है दुनिया से ऊंची कक्षाओं में । अभी यह सी.बी.एस.ई. के स्‍कूलों में लागू किया गया है । उम्‍मीद कि जानी चाहिए इसे हर शैक्षिक संस्‍था इसका पालन करे । किसी विशेष धर्म या बहुसंख्‍यक या अल्‍पसंख्‍यक के नाम पर इसमें छूट नहीं दी जानी चाहिए ।

डॉ.कोठारी ने चालीस वर्ष पहले शिक्षा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में बुनियादी रूप से ऐसी ही दो बातों का आग्रह किया था । एक समान स्‍कूल यानि कि उसी टाट पर अमीर का बच्‍चा भी बैठे और उसी पर गरीब का और वो पढ़े भी वैसी ही पाठ्य सामग्री । देखते हैं कि यह अच्‍छी शुरूआत कितनी दूर तक जाती है ।

सी.बी.एस.ई. के स्‍कूल पूरे देश भर में फैले हैं । अब इस आदेश के बाद हमारे पढ़े-लिखे मध्‍यवर्ग के अभिभावकों, बुद्धिजीवियों का फर्ज है कि वे स्‍कूलों को अपने-अपने स्‍तर पर समझाएं और उनसे  एन.सी.ई.आर.टी. या बोर्ड की किताबें लगाने के आदेशों का पालन करने के लिए कहें । समाज में अपनी भूमिका के लिए इस वर्ग को कुछ और मुखर होना पड़ेगा । यदि स्‍कूल में ये किताबें न हों तो वे प्रशासन को इसकी इत्तिला दें । इससे उनका किताबों आदि पर खर्च होने वाला पैसा तो बचेगा ही बच्‍चे भी बेहतर शिक्षा पाएंगे ।

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1 Comment

  1. Abid Ahmad ,SECR,Nainpur's Gravatar Abid Ahmad ,SECR,Nainpur
    March 28, 2014 at 8:26 am | Permalink

    Good morning Sir.
    I read your blog’s you are great sir I also having burning desire for many years but nobody help me because I am just a teacher not administor but I think l got a light like you which show me my path. Sir will you please help me ? Reply must thanks again.

    Reply
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Prempal Sharma

प्रेमपाल शर्मा

जन्म:
15 अक्टूबर 1956, बुलन्द शहर (गॉंव-दीघी) उत्तर प्रदेश

रचनाएँ:
कहानी संग्रह (4)
लेख संग्रह (7)
शिक्षा (6)
उपन्यास (1)
कविता (1)
व्यंग्य (1)
अनुवाद (1)


पुरस्कार/सम्मान :
इफको सम्मान, हिन्दी अकादमी पुरस्कार (2005), इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार (2015)

संपर्क:
96 , कला कला विहार अपार्टमेंट्स, मयूर विहार फेस -I, दिल्ली 110091

दूरभाष:
011 -22744596
9971399046

ईमेल :
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