नाम हरीचंद । काम ठेली पर हरी सब्जी बेचना । वह अक्सर अंधेरा होने के बाद ही मिलता था । गिनी-चुनी सब्जी पालक, मेथी, सरसों और कभी-कभी बैंगन । क्योंकि मयूर विहार के सामने जमुना के खादर में ठेके पर लिये हुए खेत में उसने यही सब्जियॉं उगा रखी हैं । मैंने कहा भी कि और भी सब्जियॉं रख लिया करो जैसे- आलू, मिर्च, टमाटर तो उसने बड़ी निश्चितंता में सिर हिलाया कि ‘नहीं ! मेरा गुजारा इसी से हो जाता है । दिन भर खेती का काम करता हूं और शाम को यहां ठेली लगा लेता हूं ।’ उसने खुद ही जोड़ा लेकिन यहां भी कहां लगाने देते हैं । मैंने पुलिस वालों को कहा भी कि हमसे कुछ पैसे ले लो लेकिन एक जगह रहने दो पर कोई नहीं सुनता ।
पिछले कई रोज से जब वह नहीं दिखा तो मुझे पहले आशंका हुई कि पुलिस वालों या दूसरे सब्जी वालों ने उसे हटा दिया होगा लेकिन हफ्ते भर बाद दूसरी सड़क के कोने पर उसकी ठेली थी । कुरेदने पर बताया कि सिरसा गया था । सिरसा क्यों ? तुम तो बदायूँ के रहने वाले हो । तो उसने पूरी बात बताई कि बच्चे की आंख में कुछ परेशानी है और सिरसा में सतगुरू के आश्रम में गया था । मैंने उसे समझाने की मुद्रा अख्तियार की । अरे भई दिल्ली में रहते हो तो यहीं के किसी अस्पताल में दिखाओ । उसने बात एक तरफ झिड़क दी । ‘वे बहुत बड़े संत हैं और उनके आश्रम में बड़े-बड़े डॉक्टर हैं । इनका नाम धनधन सतगुरू है । उन्होंने कुछ दिन बात आने के लिए कहा है । आंख की पुतली बदली जाएगी । परमात्मा सब ठीक कर देगा । उसके चेहरे पर यकीन की लकीरे पढ़ी जा सकती थीं । क्या यहां किसी डॉक्टर को दिखाया ? खूब दिखाया । आल इंडिया मेडिकल भी गया । बड़ी मुश्किल से नंबर आया उन्होंने बताया कि बीस हजार रुपये लगेंगे और इंतजार भी करना पड़ेगा । फिर यहीं चिल्ला गांव की एक मिली । वे बाबा जी के आश्रम में जाती हैं उन्हीं के कहने पर मैं वहां गया । अब सब ठीक हो जाएगा ।’ क्या आपकी बाबा जी से मुलाकात हुई है ? वह चकित सा मुझे देखने लगा । ‘वे तो अंतर्यामी हैं । ऐसे हर काऊ से थोड़े ही मिलते हैं ।’
हरियाणा के बाबा रामपाल के इस संदर्भेमें जो खबरे सामने आईं उन सब के पीछे भी सबसे बड़ा कारण बीमारी, गरीबी और अशिक्षा ही है । शिवपाल श्रीवास्तव बीमार रहता था । आसपास के छोटे बाबाओं ने उसके ऊपर किसी देवी का असर बताया फिर किसी और भक्त ने उसे रामपाल के आश्रम तक पहुंचा दिया । उसने रामपाल के कारनामे टी.वी. पर भी देखे थे और मुफ्त में बांटी जाने वाली ज्ञान गंगा जैसी किताब भी पढ़ी थी । बस तीन बच्चों के साथ आश्रम पहुंच गया । थोड़ी-बहुत राहत मिली । हो गया भक्त । संगरूर की रहने वाली मिल्कियत कौर को अस्थमा है । देश में डॉक्टर तो हैं नहीं और हैं भी तो निजी अस्पतालों का खर्चा गरीब कैसे उठा सकता है । मरता क्या न करता पहुंच गई आश्रम । थोड़ा-बहुत फायदा हुआ होगा बस हो गई भक्त । हजारों किस्से ऐसे हैं और इसमें से नब्बे प्रतिशत शारीरिक, मानसिक बीमारों के । क्या आपको नहीं लगता इस देश की गरीबी, अव्यवस्था इन बाबाओं की प्राणवायु है ? यदि एक तर्कसंगत शिक्षा इनको बचपन में दी गई होती जो एक स्वतंत्र राज्य का कर्तव्य भी है और सारे अस्पताल भी ठीक से काम कर रहे होते तो क्या इन बाबाओं के पास पहुंचने की नौबत आती ? बाबाओं की पकड़ सिर्फ इन मरीजों तक ही सीमित नहीं है । उनके बच्चों में भी ऐसा ही विश्वास पनपने लगता है और यही होती है बाबाओं की ऐसी पैदावार ।
अभी रामपाल की खबर तो शांत हुई ही नहीं थी कि आशुतोष महाराज उर्फ महेश कुमार झा के मामले में कोर्ट को कहना पड़ा है कि 15 दिन में उसका दाह संस्कार किया जाए । मूल रूप से बिहार के रहने वाले महेश झा उर्फ आशुतोष महाराज 29 जनवरी 2014 को खत्म हो चुके हैं लेकिन उनके भक्तों ने उनकी लाश को एक फ्रिज में रखा हुआ है । उनके अनुयायियों को यह भ्रम देते हुए कि बाबा समाधि में हैं । क्या किसी और देश की धरती पर यह संभव है ? प्राचीन ज्ञान पुष्पक विमान, गणेश जी की सूण्ड सर्जरी और ईसा पूर्व न्यूक्लियर विस्फोट की टपोरी बातें कहने और सुनने के बीच पूरे देश की छवि को ऐसी खबरों से बट्टा लगता है ।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि यह सब दिल्ली से दस किलोमीटर के घेरे में स्थित हरियाणा और आसपास के क्षेत्रों में हो रहा है । कहां हैं दिल्ली के बुद्धिजीवी, पत्रकार और मध्यवर्ग के हर समय मोमबत्ती हाथ में लिये हुए नागरिक ? क्यों इन मोमबत्तियों से हम इन डेरों को नहीं जला पा रहे ? कहां गये उत्तर दक्षिण के सभी राजनीतिक दल जो इनके खिलाफ उठती आवाजों में धीमे स्वर में हां में हां तो मिलाते हैं लेकिन वोट बैंक के डर से फिर इन्हीं की शरण में जाते हैं । इन सभी बाबाओं और आश्रमों का इतिहास बताता है कि ये सब बाबा बारी-बारी से किसी न किसी राजनीतिक दल को समर्थन देने का वायदा करते रहे हैं। उससे भी बड़े अफसोस की बात है कि इन आश्रमों में स्त्रियों और समाज के दलित पिछड़े लोगों की संख्या ज्यादा है । यानि कि समाज से हांसिये पर धकेला गया हिस्सा इन बाबाओं के आश्रम में शांति पा रहा है । एक हल्के तर्क से सोचा जाए तो गरीबों के लिए रास्ता बचता ही क्या है ? गांव के जमींदारी, जातिवादी सरपंच उनकी नहीं सुनते । सरकार तक उनकी कोई पहुंच नहीं । तो वे परमात्मा के इन्हीं पाखंडियों के पास तो पहुंचेंगे । यह अचानक नहीं है कि घरों के दड़बे में रहने वाले और दलितों में भी दलित स्त्रियों को ऐसे आश्रम में जीने की ऑक्सीजन मिलती है । यहां तक कि कुछ-कुछ स्वच्छंदता भी । आखिर कोई रोजाना के पीटे जाने से मुक्ति तो मिलती है । और एक जीवित मनुष्य के नाते अगर वो बाबाओं के आश्रम में उनको शोषण भी होता है तो हुआ करे । क्या इस सभी तरह के शोषण से मुक्ति की माया का नाम ही आश्रम नहीं है ?
अगले दिन मैं फिर उस हरीचंदकी ठेली पर । यदि मैं चलूं आपके साथ तो मुझे भी भक्त बना लेंगे ? क्यों नही ? सेवा कोई भी कर सकता है उनके यहां कई तरह के सेवक हैं । कुछ ऐसे जो वहीं रहते हैं कुछ हमारे जैसे जो साल में एक आध बार जाते हैं । अब तो दिल्ली में भी उनका आश्रम बन गया है ।
धर्मांतरण की गूँज अनगूँज अभी भी फिजा में है । यदि एक बड़े धर्म से दूसरे धर्म में जाना धर्मांतरण है तो क्या ऐसे किसी बाबा के आश्रम में जाना या उसके कहे अनुसार माला जपना धर्मांतरण की श्रेणी में नहीं आता ? और क्या इसके पीछे इस देश की करोड़ों जनता की गरीबी और बदहाली नहीं है जो एक उम्मीद से उनके पास खुद पहुंचती है ? यह अलग बात है कि इनके विश्वास और भक्ति को ये बाबा शोषण करते हैं लेकिन क्या राजनेता भी लोकतंत्र के नाम पर इन गरीबों की अज्ञानता, अशिक्षा का आजादी के बाद आज तक ऐसा ही शोषण नहीं करते रहे ? क्या इनके नारे और घोषणा पत्रों को भी ऐसे ही लालच की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए । हमारे धर्म के पंडितों, मुल्लाओं, ठेकेदारों को जितना धर्म और धर्म की संख्याओं की चिंता रहती है क्या कभी इन्होंने इन गरीबों की हारी, बीमारी, मानसिक विक्षिप्तता, कुपोषण की चिंता की ? भारतीय जनता अभी तक एक किस्म के बाबाओं की राजनीति के बोझ से सिसकती रहती तो अब अब उसे दूसरे बाबाओं के आश्वासन मिल रहे हैं । बाबाओं और धर्मांतरण की पूरी बहस को हरीचंद, शिवपाल और मिल्कियत कौर के दर्द को जाने बिना नहीं समझा जा सकता । मेरे बार-बार डॉक्टर के कहने पर हरीचंद बोला साब आप किसी डॉक्टर को जानते हो तो कह दीजिए ? क्या मैं हॉं करने की स्थिति में हूं ।