नयी सरकार ने गद्दी संभालते ही बड़े धुँआधार ढंग से स्वच्छता अभियान शुरू किया है । गांधी से लेकर ईश्वर का नाम लेते हुए । बहुत अच्छी बात है । शायद हमारे देश की गिनती दुनिया के सबसे गंदे देशों में होती है । महात्मा गांधी ने भी दक्षिण अफ्रीका में कदम रखते ही अपना सामाजिक जीवन स्वच्छता अभियान से ही शुरू किया था । लेकिन महान भारत में यह करना लोहे के चने चबाना है ।
आईये एक अनुभव साझा करते हैं । देश की राजधानी दिल्ली के पास के एक शहर में पूरी निष्ठा से अभियान शुरू किया या । पहले कदम के तौर पर शहर भर में कूड़ेदानों की व्यवस्था की गई । उन्हें एक उचित दूरी पर जगह-जगह लगाया गया । क्योंकि सबसे बड़ी समस्या यही है कि आप मनमर्जी कूड़ा फैंकना भी नहीं चाहते तब भी उसे डालेंगे कहॉं ? जनता का सहयोग मिला । कूड़ेदान भरने लगे । फिर अहसास हुआ कि ये खाली भी तुरंत होने चाहिए । उन गाडि़यों की भी व्यवस्था की गई और मजदूरों की भी जो तुरंत खाली कर सकें । कभी-कभी कूड़ेदान में इतना कूड़ा होता कि उसे उलटने में भी परेशानी होती । इसीलिए तुरंत ऐसे कूड़ेदान बनवाए गए जो हल्के हों और मजदूरों को उलटने में आसानी हो । लेकिन कुछ ही दिन बीते कि नयी समस्या आ खड़ी हुई । कूड़ेदान में कुछ शरारती तत्व माचिस की तीली जलाकर डाल देते और कूड़ेदान स्वाहा हो जाता । अब व्यवस्था के सामने यह चुनौती कि वह ऐसे कूड़ेदान बनवाए जो हल्के भी हों और माचिस की तीली से भी न जलें । यह उदाहरण बताता है कि सरकार यदि करना भी चाहे तो जब तक समाज पूरा सहयोग नहीं देता तब तक चीजें मुश्किल से आगे बढ़ती हैं ।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के बिजनौर का किस्सा आपने सुना होगा जब चोर बैंक की पूरी ए.टी.एम. मशीन को ही उखाड़कर ले गये । गनीमत रही कि वे मशीन को नहीं तोड़ पाए । कितना सुंदर स्वप्न है गॉंव-गॉंव बैंक लगाने और ए.टी.एम. की व्यवस्था जिससे कि न किसी जमींदार के हाथ जोड़ने पड़ें और अपने पैसों को भी बैंक में सुरक्षित रख दें । उत्तर प्रदेश में काम कर रहे एक और डॉं. युगल बताते हैं कि गरीबों के बीच वे बीमारियों के इलाज और दवाओं के लिये कैम्प लगाया करते थे । प्रचार के बूते सैंकड़ों लोग आते लेकिन उनकी कोशिश होती की कागज, दवाएं जो कुछ भी मुफ्त मिल जाए उसे ले के आगे बढ़ जाएं उनकी जरूरत हो या न हो ।
सरकार की पूरी नीयत के बावजूद भी सरकार की बहुत सारी योजनाओं का फायदा समाज को उस स्तर पर नहीं मिला जितना कि मिलना चाहिए था । वह स्वच्छता हो या सर्वशिक्षा अभियान । यह चुनौती हिंदी प्रदेशों में दक्षिण के मुकाबले और भी बड़ी है । कुछ सालों पहले बिहार में कोसी नदी में भीषण बाढ़ आई थी । हजारों लोग बेघरबार हो गये थे । एक कथाकार संपादक मित्र भी वहीं फँस गये थे । सभी मित्रों के सामने बड़ी संकटपूर्ण चुनौती कि कैसे भी प्रशासन अधिकारियों से बात करके उन्हें निकाला जाए । वे निकल तो आए लेकिन उन्होंने जो कहानियां बताई उन्हें सुनकर किसी का भी सिर शर्म से झुक सकता है । बाढ़ से पार कराने में वहां के लोगों ने एक-एक आदमी से हजारों रूपये वसूले । न जातिवाद काम आया न धर्म, न बिहारी होने की तरकीब । ऐसे में सरकारी व्यवस्था भी क्या करे जब जनता ही लूटने पर उतारू हो जाए । रेल दुर्घटनाओं आदि के मौके पर ऐसे हजारों किस्से सुनने को मिलते हैं । ये उस देश के नागरिक हैं जिन्हें राष्ट्रभक्ति, नैतिकता, गीता का ज्ञान, रामायण के उदाहरण कंठस्थ हैं लेकिन विपत्ति के किसी भी क्षण इनकी नैतिकताओं की पोल खुलने में जरा देर नहीं लगती ।
लेकिन समाज के उजले उदाहरणों की भी कोई कमी नहीं है । बाढ़ कोसी के बाद मुंबई में भी आई थी । पूरा शहर अंधेरे में डूब गया था । बताते हैं कि बीस-बीस मंजिला भवनों में बिजली फेल होने से लिफ्ट भी काम नहीं कर रही थी । हजारों बुजुर्ग, बच्चे फॅंसे हुए थे । यहां कॉलिज, स्कूल के बच्चों ने सीढि़यां चढ़-चढ़कर मदद पहुंचाई । यह होता है सच्चा राष्ट्र प्रेम । इससे भी बड़ा एक और वाक्या । एक टैक्सी वाले ने पूरी रात बाढ़ में डूबे लोगों को मदद पहुंचाई । जिसने भी पैसे देने चाहे उसका विनम्र उत्तर था अल्लाह, ईश्वर ने मुझे यह काम सौंपा है । क्या इसके बदले में कोई फीस लूँ ? अनुभव बताते हैं कि हवाई जहाज या ट्रेन में किसी बुजुर्ग को सामान उठाने में यदि तकलीफ हो तो भारतीय से पहले विदेशी मदद के लिए आगे आते हैं । पता नहीं कौन सी शिक्षा है जिसमें ऋषि, मुनियों के न जाने कौन से तत्व ज्ञान की बातें तो की जाती हैं, जीवन के इन सामान्य पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया जाता । वक्त आ गया है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में ये जीवित प्रश्न पढ़ाए जाएं, उन्हें पुरस्कृत किया जाए । न कि हम अपनी पीढि़यों को उन पुराणों के बोझ से लादें जो आधुनिक मनुष्य की पूरी संवेदना को ही क्रूर बना रहे हैं और सरकार के हर प्रयास को माचिस की तीली दिखाते हैं । निश्चित रूप से इस शिक्षा व्यवस्था को सरकार ही बदल सकती है ।
Leave a Reply