मरीया मोन्तेस्सोरी की सचित्र जीवनी हाल ही में मोन्तेस्सोरी बाल शिक्षण समिति ने प्रकाशित की है । इसके लेखक हैं संजीव मिश्र, जिनका 2007 में असामयिक निधन हो गया था । बहुत कम किताबें अपनी प्रस्तुति में इतनी अच्छी होती है जितनी कि मरीया मोन्तेस्सोरी की यह जीवनी । उनके बचपन तथा परिवार से जुड़े दर्जनों चित्र सहित । साथ ही बच्चों की बनाई ढ़ेरो चित्रों से पृष्ठ-दर-पृष्ठ सजावट । ऐसी पुस्तकें देखते ही बच्चे-बड़े बिना पढें अपने को नहीं रोक सकते ।
वैसे तो मोन्तेस्सोरी का नाम इस महाद्वीप में भी जाना-पहचाना नाम है लेकिन बहुत कम लोग उनके जीवन से परिचित होंगे । इसलिए पहले संक्षेप में उनका जीवन परिचय । उनका जन्म 31 अगस्त 1870 को इटली में हुआ था । मारिया 19वीं सदी के अंत में इटली की पहली महिला डॉक्टर बनीं । उनकी मॉं का नाम रेनील्डे तथा पिता का नाम कर्नल एलेसान्द्रो मोर्न्तेस्सारी था । बेटी मरीया डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन परिवार एकदम खिलाफ था । परिवार के अलावा शिक्षा बोर्ड के प्रमुख तक ने कह दिया कि डॉक्टरी की पढ़ाई लड़कियों के लिए कतई असंभव है । लेकिन मरीया की दृढ़-निश्चय के चलते उन्होंने मेडिकल में दाखिला लिया । उनका काम डॉक्टरी तक ही सीमित नहीं रहा । अपने संवेदनशील व्यवहार के चलते उनका झुकाव ऐसे बच्चों की तरफ बढ़ता गया जो मनोरोगी थे या जिन्हें पागलखाने में भर्ती करा दिया जाता था । यहाँ उनका ध्यानमानसिक रूप से विमंदित कहे जाने वाले बच्चों की ओर गया और पूरा जीवन लगा दिया । यहीं उन्होंने शिक्षा की वे पद्धतियॉं खोजीं जिन्हें दुनिया भर में मान्यता मिली ।
पुस्तक की भूमिका में जाने-माने शिक्षाविद् रमेश थानवी ने ठीक ही लिखा है ‘मरीया का विश्वास था कि शिक्षा के किसी भी काम का अर्थ बालकों के करीब आना है, उनको जानना है और बचपन को उसकी संपूर्णता के साथ अन्वेषित करना है । मरीया शिक्षा के काम को सीखने की उन्मुक्तता का अवसर मानती थी । उनके अनुसार बालकों को सिखाना हमारा काम नहीं है अपितु सीखने का खुला अवसर देना हमारा काम है । शिक्षक सीखने के इस अवसर में सहयोगी बनता है । वह बालकों को साधन सुलभ करवाता है तथा उनके उपयोग में उनका सहयोग करता है । बालक के लिए किसी भी चीज को सीख लेना किसी शिखर पर विजय हासिल करने जैसा होता है । सीख लेने का छोट से छोटा अनुभव बालक को नयी प्रफुल्लता देता है । उसे उमंग और उत्साह से भर देता है । तब वह एक उजले भविष्य के प्रति आश्वस्त हो जाता है । मरीया मोन्तेस्सोरी की पूरी जीवन-साधना बालकों को इसी उजले भविष्य के प्रति आश्वस्त करने की साधना थी । ‘
यही कारण है कि पूरे विश्व में मोन्तेस्सोरी की शिक्षा-पद्धति को एक आशा और उम्मीद के रूप में देखा जाता है ।
पुस्तक में उनके बचपन और प्रतिभा के अनेको प्रसंग हैं । यह बात भी कम प्रेरणादायक नहीं है कि जिस यूरोप में आज हम स्त्रियों की बराबरी देखते हैं, सौ वर्ष पहले वहॉं भी उन्हें डॉक्टरी पढ़ने से मना किया जाता था । भारत के संदर्भ में इससे अनेको सबक लिए जा सकते हैं । डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद यूरोप की शिक्षा-पद्धति के अनुकूल पूरे कॉलेज में प्रमुख विद्वानों के सम्मुख चिकित्सा-विज्ञान से संबंधित विषय पर भाषण देना होता है । मरीया की डॉक्टरी पढ़ने से नाराज चल रहे पिता के एक मित्र ने उनको जबरन उस हॉल तक ले गए जहॉं मारिया को भाषण देना था । हॉल खचाखच भरा था । मरीया की डॉक्टरी विषय पर पकड़ इतनी स्पष्ट और सटीक थी कि भाषण के खत्म होने पर पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा । अपनी चिकित्सक बेटी का यह रूप देखकर पिता का गुससा काफूर हो गया ।
एक और प्रसंग का उल्लेख करना उचित होगा । ‘एक रात मरीया को दो जुड़वॉं बच्चों का इलाज करने का बुलावा आया । उनके घर जाने पर मरीया ने देखा कि घर में निर्धनता का माहौल है । बच्चे लगभग मरणासन्न थे । उनका पिता कह चुका था, अब डॉक्टर को बुलाने का क्या फायदा, ये बच नहीं सकते । मरीया ने पहुँच कर उन बच्चों की मां को सोने भेज दिया । चूल्हा जलाया, पानी गर्म कर बच्चों को नहलाया । उनका विशेष पथ्य पकाया, उन्हें खिलाया, दवा दी, सुलाया । धीमे-धीमे रात-भर में मरीया की स्नेहपूर्ण परिचर्या से बच्चों की तबियत सुधरती गई ।
यह पुस्तक गिजुभाई फाउण्डेशन, कोलकाता के सहयोग से प्रकाशित हूई है, इससे पहले यह राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति ‘अनौपचारिका’ को नियमित रूप से प्रकाशित की गई थी । पूरी प्रस्तुति को जन-जन तक पहुँचाने के लिए, इस यज्ञ से जुड़े हर का हिन्दी समाज आभारी रहेगा । काश । इन सभी प्रयासों से भारत में भी कोई मरीया मोन्तेस्सोरी पैदा हो और बच्चों व उनके माता पिता को तनाव से मुक्ति दिलाए जिससे आज सारा देश गुजर रहा है ।
पुस्तक : मरीया मोन्तेस्सोरी
जीवनी एवं शिक्षा-दर्शन
लेखक : संजीव मिश्र
प्रकाशक : मोन्तोस्सोरी बाल शिक्षण समिति, राजलेदसर (चुरू) राजस्थान
कीमत : 150 /-
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