इलाहाबाद,गोरखपुर विस्वविधालय में हाल में हुई प्रोफेसर ,सहायक प्रोफेसर की भर्ती पर बवाल मचा हुआ है.भयानक बेरोजगारी के चलते सरकार,आयोगों के हर काम को शक से देखा जाता है .सिर्फ संघ लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा पारदर्शिता, ईमानदारी, समयबद्धता की कसौटी देश भर में अतुल्य है। राज्यों के आयोग तो दशकों से लेट लतीफी, भ्रष्टाचार, गैर-कानूनी कामों के लिए उतने ही बदनाम हैं . ऐसे समय में जब भर्ती आयोगों को भ्रष्टता का पर्याय मान लिया गया हो, गुजरात राज्य के लोक सेवा आयोग में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिए पिछले एक वर्ष में किए बदलाव पूरे देश की व्यवस्था को रास्ता दिखा सकते हैं।दिल्ली के संघ लोक सेवा आयोग ने भी इसकी तारीफ की है .
हाल ही में पूरे गुजरात राज्य के विभिन्न कॉलिजों में विषयगत भर्ती का विज्ञापन निकाला गया था। लिखित परीक्षा के लिए लगभग अस्सी प्रतिशत अंक और 20 प्रतिशत साक्षात्कार के लिए। यहां साक्षात्कार की प्रक्रिया और पारदर्शिता विशेष रूप से गौर करने लायक है। पच्चीस मिनट के साक्षात्कार में उम्मीदवारों को स्पष्ट हिदायत है कि न वे अपना नाम बतायेंगे न पिता का । अपना कुछ का निजी परिचय विवरण नहीं- जैसे न जाति, न धर्म, न क्षेत्र। यथासंभव विश्वविद्यालय या गाइड का भी नाम नहीं , जब तक की पूछा न जाए। ऐसा कोई विवरण भर्ती बोर्ड के सदस्यों के पास भी नहीं होगा। सिर्फ होगा एक गोपनीय कोड नाम- एक्स वाई जेड या ए बी सी जैसा। लगभग क्रोतिकारी बदलाव। क्योंकि यदि साक्षात्कार लेने वालों के पास उम्मीदवार के विवरण होते हैं तो मानव्- स्वाभाविक कहीं न कहीं निष्पक्षता प्रभावित होती है। कभी इस बात से पूर्वाग्रह बनता है कि आई.आई.टी से है तो मेधावी होगा ही, तो कभी जाति, धर्म, राज्य विशेष से दुराग्रह। नयी प्रणाली में ऐसे पूर्वाग्रह की संभावना ही समाप्त। जो है वह है उम्मीदवार और उससे पूछे जाने वाले प्रश्नों के आइने में उसका समग्र मूल्यांकन। जरूरत भी क्या है उसके अवांछित व्यक्तिगत विवरणों को जानने की । केन्द्रीय संघ लोक सेवा और कर्मचारी चयन आयोगों से भी सौ कदम आगे। भविष्य में सभी आयोगों,चयन बोर्ड के लिए अनुकरणीय।
उम्मीदवार को कोड और बोर्ड पूरी गोपनीयता बरतते हुए चंद मिनट पहले आबंटित होगा। अैर इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों को भी पहुंचने के बाद .सिफारिश लगाने, ढूंढने के सारे रास्ते बंद! सदस्यों को भी नहीं पता होता कि कल वे किस के साथ किस बोर्ड में बैठेंगे। मोबाइल आदि पर भी पूरी पाबंदी। आयोग के सदस्यों पर भी सभी नियम लागू। न कोई बाहर जाएगा न उनसे उस दौर में मिलने की इजाजत। इंटरव्यू समाप्त होते ही सभी सदस्यों की मूल्यांकन शीट लिफाफे में बंद जिसे इंटरव्यू होने के बाद परीक्षा-नियंत्रक ही कम्पयूटर में दर्ज करेगा। और परिणाम यथा-संभव दो-तीन दिनों में ।
कुछ और कदम भी ध्यान खींचते हैं। अक्सर अलग अलग बोर्डों के मूल्यांकनों में ऊंच-नीच होती है। कोई खुले हाथ से नम्बर देता है तो दूसरा कंजूसी से। इसलिए पहले दिन सभी बोर्ड एक साथ इंटरव्यू लेते हैं।आपसी विमर्श से न्यूनतम और अधिकतम की लचीली सीमा रेखा बनाते हुए।
यह सब जानकर अस्सी के दशक से हाल तक के उत्तर भारत के वे सभी भर्ती बोर्ड-आयोग शूल की तरह चुभने लगते हैं जिनसे हमारी कई पीढि़यां गुजरी हैं और इस विश्वास के साथ स्वर्ग सिधारी हैं कि बिना जान पहचान, सिफारिश, रिश्वत के सफल नहीं हो सकते। कभी दो मिनट में ही उम्मीदवार बाहर तो कभी सिर्फ व्यक्तिगत विवरण जानकर ही साक्षात्कार पूरा। सदस्य भी सिफारिशों की पर्चीयों ,फोनो से घिरा। कभी पहले से रटाये प्रश्न तो कभी पूर्व निर्धारित बोर्ड। साक्षात्कार पिछले दरवाजे से चौरी का रास्ता। इसलिए मौजूदा केंद्र सरकार ने अस्सी प्रतिशत पदों में साक्षात्कार समाप्त कर दिया है।लेकिन विश्व विधालय अभी इसे मानने को तैयार नही है .
परिणाम की घोषणा सिर्फ तीन चार दिनों में पारदर्शिता, दक्षता की एक और कसौटी है वरना महीनों, सालों सिफारिशों की खींचतान में ही निकल जाते हैं। बहुत पुरानी बात नहीं है जब परीक्षा चक्र पूरा होते होते पांच वर्षीय योजना पूरी हो जाती थी। रेलवे से लेकर सिंचाई, बिजली सभी विभागों में।
दरअसल सच्चे लोकतंत्र की यही अभीष्ट है। देश के अंतिम आदमी की आस्था ऐसे ही कदमों से वापस लौटेगी। दिल्ली के शाहजहां रोड पर स्थित संघ लोक सेवा आयोग के आगे हजारों सिर इसी आस्था से झुकते हें कि दम है,प्रतिभा है तो सफलता जरूर मिलेगी। पारदर्शिता है तो दलालों को मौका नहीं मिलेगा। सही रास्ते से चुने हुए कर्मचारी ही नाभिकीय प्रतिक्रिया की तरह भविष्य को और ईमानदार बनायेंगे।
इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए पूर्व केबिनेट सेक्रटरी सुब्रह्मयिम ने वर्ष 2016 में विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती के लिए एक यू.पी.एस.सी. जैसा भर्ती बोर्ड बनाने की सिफारिश की थी। आश्चर्य की बात है कि ऐसे आयोग के गठन के खिलाफ या चुप्पी सबसे ज्यादा दिल्ली जे.एन.यू, इलाहाबाद, पटना के बुद्धिजीवियों में है। कारण साफ है। लिखित परीक्षा हुई तो उनके सभी आयोग्य चापलूस, चेले-चपाटे भर्ती से बाहर हो जाएंगे। क्या 21वीं सदी में यह कल्पना की जा सकती है कि सिर्फ साक्षात्कार के नाटक के वहाने पिछले दरवाजे से प्रोफेसर की भर्ती की जाये। शिक्षा का स्तर इसलिए लगातार गिरा है। विश्वविद्यालय भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े अड्डे बन गए हैं। विश्वविद्यालय की नौकरी पाना पंसारी की दुकान पर काम पाने से भी आसान बन गया है। सिर्फ चापलूसी और नकली वैचिारिक प्रतिबद्धता की जरूरत है।
गुजरात पब्लिक सर्विस कमीशन की प्रशंसा न तो पूरी सरकार के सभी पक्षों पर टिप्पणी है न विचारधारा की लेकिन जो अच्छा है अनुकरणीय है उसकी तारीफ तो की ही जानी चाहिए। धुप अंधेरे में रोशनी की तरह। पंच परमेश्वर, भर्ती बोर्ड की भूमिका भी यही होती है। संस्थानों का निर्माण ऐसे ही कदमों से ही होगा।
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